जैसे
दूर कहींसे
आ रही
सुललित
सकरूण
एक
दूर कहींसे
आ रही
सुललित
सकरूण
एक
बंशी की धुन हो
जो बनाती हैं
मुझे भाव विभोर !
मुझे मालूम हैं
न मिलेगा
न आएगा
वापस कभी
मेरा सुनहरा बचपन
फिर भी पागल मन
यादों की चिड़ीयो के सहारे
कोशिस करता हैं बारबार
उसे स्पर्श करने की
……………………………………..
Posted on 31st July 2012
जो बनाती हैं
मुझे भाव विभोर !
मुझे मालूम हैं
न मिलेगा
न आएगा
वापस कभी
मेरा सुनहरा बचपन
फिर भी पागल मन
यादों की चिड़ीयो के सहारे
कोशिस करता हैं बारबार
उसे स्पर्श करने की
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Posted on 31st July 2012
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