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Monday, April 20, 2015

दुख का कोई अंत कभी तो होगा !


दुख का कोई अंत कभी तो होगा !


 मेरे मन में अकसर ख़्याल आता हैं कि क्या फ़र्क पड़ेगा मेरे होने या नहीं होनेसे
 हर सुबह, हर शाम और हर रात वैसे ही चलता रहेगा जैसे कि अब चल रहा हैं
 जूझ रहा हूँ अपनी पहचान बनाने को निरंतर,  
 ताकि कमसे कम अपने चाहने वालों को कभी तो याद सकूं

आज किसीके चहेते कल कहलाते है ‘लाश’ 

- अफसोस तो होता है  इसी बात का

 कि गैर तो गैर, अपने भी जब पुकारते इस नाम से !

कुछ ऐसा करो कि अपनी गैर-मौजूदगी में भी

लोगो को एहसास हो कि आप मौजूद हो बाइज्ज़त !


20-04-2015


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